Saturday, December 26, 2009

अपना जहाँ बनाओ

दोस्तों,
अच्छा लगा तुम्हारे विचार पढ़ कर। दिमाग बहुत दिनों बाद फिर से काम करने लगा है। अब ये मत कहना - दिमाग होगा तो काम करेगा न। अरे, दिमाग तो है , पर आजकल हम दिल का इस्तेमाल कुछ ज्यादा करते हैं। और तुम जैसे दोस्त फिर से मिल जाते हैं जो दिल और दिमाग को बैलेंस करके चलाना सीखा देते हैं तो मानो चमत्कार होने लगते हैं। एक दोस्त के विचार पढ़ कर फिर से कवी ह्रदय चैतन्य हो उठा है......

कल हमने सपरिवार ३ इदिअट्स देखि। बहुत अच्छी लगी। सिनेमा देख कर समीक्षा करने की आदत तो हमें नहीं है पर कभी कभी बहुत कुछ सोचने लगते हैं। और वो सोच जब हम कागज़ पर उकेरते हैं तो कविता जैसा ही बनता है । पानी में ज्यादा गहरा तो नहीं उतरेंगे , क्योंकि हमे अच्छे से तैरना नहीं आता है। पर हम जानते है की आप दोस्त लोग ज़रूर इसमे से मोती ढून्ढ लाओगे।

क्यों हम चाहें , तुम तारों को छू कर आओ...
आसमान में ऊपर - ऊपर उड़ते जाओ....
क्यों हम चाहें , तारों को तोड़ लाओ,
आसमान के आगे एक नया जहाँ बनाओ...

क्यों हम चाहें , सपनों को अपने जला कर,
हमारी दुनिया को....
रोशन करते जाओ।

जाओ,
हक है तुमको .....
इस जहाँ से अलग तुम अपना जहाँ बनाओ.....
सपनों से अपने उस जहाँ को सजाओ

आसमान के तारों से ...
उस जहाँ को रोशन करना....
फिर उन तारों में एक तारा....
हमारे नाम करना।

बस ये है हमारा कवी ह्रदय।